सोमवार, 25 अप्रैल 2016

सब चलता है

सब चलता है

"सब चलता है" वाली मानसिकता जीवन के हर क्षेत्र में हमारी राष्ट्रीय कमजोरी बन चुकी है| 
सवाल यह है कि यह मानसिकता बदले कैसे? 
यह वास्तव में यक्ष प्रश्न है
पहले हमें आशा थी कि नई पीढ़ी हालात बदलेगी
लेकिन समाज के हर वर्ग में येन केन प्रकारेण सब कुछ तुरंत हासिल करने की 
बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए हालात बदलने की सारी आशाएं धूमिल होती जा रही हैं
ऐसी निराशाजनक स्थिति में प्रकृति स्वतःअपना कार्य करेगी 
या फिर यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवती...का 
शाश्वत सिद्धांत कार्य करेगा
हालात तो हर हाल में बदलेंगे
यदि हम स्वयं नहीं बदलेंगे तो प्रकृति अपने विध्वंसात्मक रूप में कार्य करेगी! 
ऐसी स्थिति मानव जाति के लिए घोर पीडादायक होगी 
पर यह युगांतरकारी परिवर्तन के लिए आवश्यक होगी|