सब चलता है
"सब
चलता है" वाली मानसिकता जीवन के हर क्षेत्र में हमारी राष्ट्रीय कमजोरी बन
चुकी है|
सवाल यह है कि यह मानसिकता बदले कैसे?
यह वास्तव में यक्ष प्रश्न है|
पहले हमें आशा थी कि नई पीढ़ी हालात बदलेगी|
लेकिन समाज के हर वर्ग में येन केन प्रकारेण सब कुछ तुरंत हासिल करने की
बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए हालात बदलने की सारी आशाएं धूमिल होती जा रही हैं|
ऐसी निराशाजनक स्थिति में प्रकृति स्वतःअपना कार्य करेगी
या फिर यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवती...का
शाश्वत सिद्धांत कार्य करेगा|
हालात तो हर हाल में बदलेंगे|
यदि हम स्वयं नहीं बदलेंगे तो प्रकृति अपने विध्वंसात्मक रूप में कार्य करेगी!
ऐसी स्थिति मानव जाति के लिए घोर पीडादायक होगी
पर यह युगांतरकारी परिवर्तन के लिए आवश्यक होगी|
सवाल यह है कि यह मानसिकता बदले कैसे?
यह वास्तव में यक्ष प्रश्न है|
पहले हमें आशा थी कि नई पीढ़ी हालात बदलेगी|
लेकिन समाज के हर वर्ग में येन केन प्रकारेण सब कुछ तुरंत हासिल करने की
बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए हालात बदलने की सारी आशाएं धूमिल होती जा रही हैं|
ऐसी निराशाजनक स्थिति में प्रकृति स्वतःअपना कार्य करेगी
या फिर यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवती...का
शाश्वत सिद्धांत कार्य करेगा|
हालात तो हर हाल में बदलेंगे|
यदि हम स्वयं नहीं बदलेंगे तो प्रकृति अपने विध्वंसात्मक रूप में कार्य करेगी!
ऐसी स्थिति मानव जाति के लिए घोर पीडादायक होगी
पर यह युगांतरकारी परिवर्तन के लिए आवश्यक होगी|