शनिवार, 29 मई 2021

मेरी कोरोना यात्रा

 

मेरी कोरोना यात्रा

                                                                                                    

                                                                                                      - एस एन घाटिया

सामान्यतः हम यात्राएं स्वेच्छा से करते हैं, पर कभी-कभी जीवन में कुछ अनचाही यात्राएं भी करनी पड़ जाती हैं| स्वाभाविक है कि ऐसी अनचाही यात्राएं शारीरिक और मानसिक रूप से पीडादायक सिद्ध हो सकती है| मैं मेरी ऐसी ही अनचाही कोरोना यात्रा के अनुभव शेयर करना चाहता हूँ|

09 04 2021 शुक्रवार: दोपहर में खाना खाने के बाद मुझे हल्का सा बुखार रहा और बदन टूट रहा था| किसी काम में मन लग नहीं रहा था| मुझे लगा कि यह कोविड वेक्सिनेशन की दूसरी डोज के इंजेक्शन का साइड इफ़ेक्ट होगा| शाम होते-होते मैंने सोचा पैरासिटामोल (बुखार) की एक गोली ले लेनी चाहिए| गोली लेने के आधे-पौन घंटे बाद कुछ चैन मिला और मन कुछ स्थिर हुआ| रात को जल्दी सो गया और अच्छी नींद आई|

10 04 2021 शनिवार: सवेरे 5 बजे उठने पर बदन में ताजगी महसूस कर रहा था| हर रोज की तरह स्टेडियम में आधे घंटे के लिए घूमने गया| घूमने आने वाले लगभग सभी लोग अब मास्क लगा कर आने लग गए हैं| आपस में बातचीत में भी कोरोना की दूसरी लहर की ही चर्चा प्रमुख रहती है| वहाँ से घर लौट कर ऊपर छत पर गया, प्राणायाम और कुछ हल्की-फुल्की स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज की| पौधों में पानी दिया और पूजा के लिए फूल ले कर नीचे आया| नाश्ता किया, नहाया और पूजा-पाठ किया| कमरे में आ कर कंप्यूटर पर काम करने लगा तो फिर बदन टूट सा रहा था, पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और काम करता रहा| बारह बजे खाना खाने के बाद लगा कि बदन गरम है और हल्का सा बुखार आ रहा है| सोचा एक पैरासिटामोल ले लूं, लेकिन फिर लगा कि अभी थोड़ी देर सो जाता हूं फिर जरूरत हुई तो ले लूंगा| दोपहर दो बजे उठने पर बुखार नहीं था, हो सकता है थकान और नींद की कमी के कारण बुखार जैसा लग रहा होगा| शाम तक सामान्य रूप से कार्य करता रहा| लेकिन शाम होते-होते फिर हल्का सा बुखार होने लगा| भोजन करने के बाद कफ और खांसी भी होने लगी| अब मुझे थोड़ी चिंता होने लगी| लेकिन यह सोच कर कि यह मौसम परिवर्तन के कारण होने वाला सर्दी-जुकाम है, जो कि मुझे चैत्र-बैसाख में अक्सर हो जाता है| अतः एक पैरासिटामोल ले कर जल्दी सो गया|

अगले दिन रविवार को भी लगभग यही स्थिति रही सिवाय इसके कि दिन में गोली खाने की जरूरत नहीं पडी और केवल रात को सोने से पहले ली|

सोमवार को सुबह उठने पर बदन में दर्द हो रहा था| इसलिए मेरे मॉर्निंग वाक के साथी बंसल सा. को फ़ोन कर मना कर दिया कि आज मैं घूमने नहीं आ पाऊँगा| दिन में बुखार की एक गोली ली लेकिन शाम को इसकी जरूरत नहीं पडी|

13 04 2021 मंगलवार से नवरात्र आरंभ हो गए है| मैं हर बार रामचरितमानस का नवान्हपारायण करता हूँ| बढ़ती हुई आयु के कारण डाक्टर की सलाह से पिछले एक वर्ष से नवरात्र में उपवास के स्थान पर अब मैं एक समय भोजन करने लगा हूँ| इससे शरीर में थोड़ी स्फूर्ति और शक्ति रहती है| पूजा-पाठ की व्यस्तता और शहर में तेजी से फैलते हुए कोरोना को देखते हुए सुबह स्टेडियम में घूमने जाना भी बंद कर दिया|

अगले दो दिन बुधवार, गुरुवार को मैं सामान्य रूप से शांतिपूर्वक अपनी दिनचर्या में व्यस्त रहा| किसी प्रकार की कोई विशेष शारीरिक कठिनाई नहीं महसूस की सिवाय हल्की सी खांसी और जुकाम के, जिसके लिए पेरासिटामोल और विक्स ले कर अपने दैनिक कार्य करता रहा|

16 04 2021 शुक्रवार: सुबह उठने पर  मेरी पत्नी ने बताया कि उसे भी हल्की सी खांसी और जुकाम हो गया है| इससे मुझे थोड़ी चिंता होने लगी कि कहीं यह संक्रमण मेरी वजह से तो नहीं है| स्नान के पश्चात भगवान की सेवा-पूजा में रूई में इत्र लगा कर रख रहा था तो एकदम से लगा कि आज इत्र की सुगंध महसूस नहीं हो रही है| ऐसा लगा कि जैसे दिमाग में खुशबू का स्विच एकदम बंद हो गया है| सुगंध का महसूस न होना भी कोरोना का लक्षण होता है| फिर मन को समझाया कि ऐसा तो सामान्य जुकाम में भी हो जाता है| लेकिन मन-ही-मन बैचेनी बढ़ती गयी और शीघ्रता से पूजा-पाठ पूर्ण कर कोविड जांच कराने का निश्चय किया| तलवंडी डिस्पेंसरी गया तो उन्होने कहा कि कोविड की RT-PCR जांच उनके यहाँ नहीं होती है| पूछने पर उन्होंने दादाबाड़ी डिस्पेंसरी जाने की सलाह दी| वहाँ बताया कि आज की जांच का कार्य तो पूरा हो गया है, कल आना|

17 04 2021 शनिवार: सुबह दैनिक कार्यों और पूजा पाठ से निवृत्त हो कर हम दोनों 10 बजे दादाबाड़ी डिस्पेंसरी पहुँच कर लाइन में लग गए| वहाँ कोविड जांच के लिए लंबी लाइन लगी हुई थी और दो घंटे से पहले नंबर आने की संभावना नहीं थी| इसलिए सोचा इस बीच में डाक्टर को दिखा लेते हैं| डाक्टर के यहाँ लाइन में दो-चार लोग ही थे, इसलिए तुरंत नंबर आ गया| दोनों की दवा की पर्ची बनवा दवा ले कर वापस लाइन में अपने स्थान पर खड़े हो गए| लगभग 12 बजे हमारा नंबर आया और हमारे गले में से लार का सेम्पल लिया गया| सेम्पल देने के बाद तुरंत 5 मिनट में मोबाइल पर मैसेज आ गया जिसमे हमारे सेम्पल की SRF ID के साथ सलाह दी गयी थी कि टेस्ट की रिपोर्ट आने तक हम आइसोलेशन में रहें| हमें बताया गया कि सैम्पल गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, कोटा की लैब को भेज दिया गया है| पूछने पर बताया कि सैंपल की संख्या बहुत अधिक होने से आजकल टेस्ट की रिपोर्ट आने में तीन दिन लग रहे हैं| बाद में समाचार पत्रों से ज्ञात हुआ कि गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज लैब में आठ-आठ घंटे की पारियों में तीन जांच टीमे RT-PCR का कार्य कर रही हैं|

घर आ कर डिस्पेंसरी से मिली दवाओं को खोल कर देखा तो उनमे मेरे लिए 5 दिन की  निम्नलिखित दवाएं थी:

1.       Azithromycin 500 mg (एंटीबायोटिक गोली) 5

2.       Paracetamol 500 mg (बुखार की गोली) 10

3.       विटामिन, कैल्शियम, जिंक आदि सप्लीमेंट्स की गोलियां

4.       कफ सीरप

5.       ORS Powder के दो पैकेट

गीता के लिए भी यही दवाएं थी पर उसके लिए तीन दिन का ही कोर्स था| उसने पीठ दर्द के बारे में भी डाक्टर को बताया था इसलिए दर्द निवारक क्रीम की ट्यूब भी दी थी|

डिस्पेंसरी में तीन घंटे तक खड़े-खड़े बहुत थक गए थे| अतः घर आ कर फुर्ती से भोजन कर बताई गयी दवाएं ले कर सो गया| दो घंटे के बाद नींद खुली तो काफी तरोताजा और स्वस्थ महसूस कर रहा था, दर्द, बुखार, खांसी कुछ नहीं था| मन ही मन डाक्टर को धन्यवाद दिया कि बिना किसी लंबी-चौड़ी जांचों के, केवल क्लिनिकल ऑब्जरवेशन के आधार पर ही उन्होंने बिलकुल सही दवाएं दे दी| आज मुझे लगा कि सरकारी अस्पतालों में व्यवस्थाएं इतनी खराब नहीं हैं जितनी कि बताई जाती है, बल्कि कई मायनों में प्राइवेट अस्पतालों से बेहतर है| इसका एक और प्रत्यक्ष प्रमाण यह मिला कि गीता केवल तीन दिन की दवाओं के कोर्स से बिलकुल ठीक हो गयी|

ऑक्सीजन के सेचुरेशन लेवल को चेक करने के लिए मैंने ऑक्सीमीटर भी मंगवा लिया| हम दोनों का ऑक्सीजन लेवल 97-98 था| मेडिकल पैरामीटर्स के अनुसार सामान्य रूप से ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल 94 से ऊपर रहना चाहिए| वैसे भी, हमें सांस में कोई कठिनाई नहीं थी|        

19 04 2021 सोमवार को  शाम को 7:48 पर गीता की नेगेटिव रिपोर्ट का निम्नलिखित मैसेज आ गया:

“COVID 19 test result of GEETA (India) SRF ID 0810900478350 on date 17/04/2021 found Negative. The test has been done by RTPCR. Health Dept. Govt. of Rajasthan.”

इस नेगेटिव रिपोर्ट से मन को बहुत राहत मिली| लेकिन मेरी रिपोर्ट नहीं आने से मन में आशंका बनी हुई थी|

20 04 2021 मंगलवार को सुबह मोबाइल खोला तो देर रात मेरा मैसेज भी आया हुआ था जिसमे मेरी रिपोर्ट पोजिटिव बताई गयी थी और निम्नलिखित सावधानियों के लिए कहा गया था:

“COVID 19 test result of SATYANARAYAN (India) SRF ID 0810900478334 on date 17/04/2021 found Positive. The test has been done by RTPCR. Health Dept. Govt. of Rajasthan.”

“कोविड रोगी टोल फ्री न. 181 पर निम्न सुविधा हेतु संपर्क करें| 1. अस्पताल में बैड, आईसीयू एवं वेंटिलेटर| 2. होम आइसोलेशन रोगी हेतु मेडिकल टीम व दवाइयां| 3. होम आइसोलेशन हेतु स्थान उपलब्ध न होने पर| 4. पोस्ट कोविड (कोरोना रोग अवधि पश्चात) परामर्श| 5. ऑक्सीजन सेचुरेशन 94 से कम होने पर| 6. सांस लेने में तकलीफ होने पर| Medical & Health, GOR”

कोरोना पोजिटिव होने के इस मैसेज को पढ़ कर मैं एकदम सन्न रह गया और मन में कई तरह की दुश्चिंताएं होने लगी और नकारात्मक विचार मन में आने लगे| थोड़ी देर मन ही मन सोच-विचार के बाद निश्चय किया कि घबराने से काम नहीं चलेगा और जो समस्याजनक स्थिति है उसे स्वीकार कर उसका समाधान करना पडेगा| अच्छी बात यह थी कि मेरा ऑक्सीजन लेवल सामान्य था और मुझे सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी| साथ ही, पिछले दो दिन से डाक्टर द्वारा दी गयी एंटीबायोटिक गोलियां और अन्य दवाएं नियमित रूप से लेते रहने के कारण बुखार और खांसी भी कंट्रोल में थे| एक और अच्छी बात यह थी कि हमने वेक्सिनेशन की दोनों डोज बहुत पहले ही (03 03 2021 और 04 04 2021 को) लगवा रखी थी| अखबारों और सोशल मीडिया पर यह पढ़ रखा था कि दोनों डोज लगाने के बाद भी कोरोना हो सकता है पर वेक्सिनेशन के कारण रोगी जल्दी ठीक हो जाता है, बस सावधानीपुर्वक रहना होगा| सबसे पहले तो मैंने गीता को मेरी पोजिटिव रिपोर्ट के बारे में बताते हुए कहा कि अब मैं कमरे में अकेला आइसोलेशन में रहूँगा| इसके बाद टोल फ्री न.181 पर फोन कर उन्हें मेरी पोजिटिव रिपोर्ट और वर्त्तमान शारीरिक स्थिति के बारे में बताया| उन्होंने पूछा अस्पताल में भरती होना चाहते हो या घर पर ही आइसोलेशन में रहना चाहते हो| अब तक मेरी प्रारंभिक घबराहट दूर हो चुकी थी और मैं नार्मल महसूस कर रहा था| अतः मैंने हॉस्पिटल में भरती होने के बजाय घर पर ही आइसोलेशन में रहने की इच्छा जताई| उन्होंने कहा कि थोड़ी देर में आपके लिए आवश्यक दवाओं की व्यवस्था कर दी जाएगी| करीब एक बजे तलवंडी से फोन आया कि आप किसी को भेज कर अपनी दवाएं मंगवा लें और आप स्वयं घर से बाहर न निकलें|

कोरोना की दवाईयों की किट में पांच दिन का कोर्स था और सारी दवाईयां लगभग वही थी जो मुझे 17 04 2021 को डाक्टर ने दादाबाड़ी डिस्पेंसरी से दी थी| अगले तीन दिनों तक मैं ये दवाईयां लेता रहा और अपने दैनिक रूटीन में बिना किसी रुकावट के व्यस्त रहा| रोज सुबह छत पर जाता था जहां पौधों में पानी देना, प्राणायाम और हल्की-फुल्की स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज चालू रखी|

22 04 2021 गुरुवार: मैंने नोटिस किया कि दस्त पतली आने लग गयी हैं और भोजन करने या कुछ भी खाने के बाद पेट में मरोड़ उठती है जिसके कारण बाथरूम जाना पड़ता है| इसके बारे में जानकारी लेने पर बताया गया कि यह एंटीबायोटिक Azithromycin गोली का साइड इफ़ेक्ट है और इस गोली को लेना बंद करने पर दस्त नार्मल हो जाएँगी|                        

23 04 2021 शुक्रवार को सुबह उठने पर बहुत तरोताजा महसूस कर रहा था, पिछले 24 घंटों में  बुखार भी नहीं आया था और रात में नींद भी अच्छी आई थी| मन की आशंकाएं अब नगण्य सी रह गयी थी| पोजिटिव रिपोर्ट आने के बाद दिन में एक-दो बार डिस्पेंसरी और कोविड कंट्रोल रूम से फोन पर मेरे हालचाल पूछते रहते थे और मैं उन्हें धन्यवाद्पूर्वक अपनी सुधरती हुई स्थिति के बारे में बताता रहता था|

26 04 2021 सोमवार: खांसी-बुखार की लगभग सामान्य स्थिति रही, लेकिन पतली दस्तों की समस्या से मैं चिंतित था और लग रहा था कि इसके कारण दिन में एकाध बार हल्का सा बुखार भी आने लगा है जिसके लिए पेरासिटामोल गोली लेनी पड़ती है| आज दिन में डिस्पेंसरी से फोन आने पर अपनी इस चिंता के बारे में बताने पर उन्होंने आश्वासन दिया कि वे इसका कुछ समाधान निकालेंगे| लेकिन शाम तक वहाँ से कोई फोन नहीं आया| आज मेरा एंटीबायोटिक्स का 10 दिन का कोर्स भी पूरा हो गया था| शाम का भोजन करने के बाद सोने पर रात को 11 बजे नींद खुल गयी, गला सूखा हुआ था, पेट में मरोड़ आ रही थी, हाथ-पाँव में खुजली चल रही थी और खांसी भी थी| बाथरूम गया तो काफी पतली दस्त आई| ORS का घोल बना कर पिया| खांसी के लिए एक चम्मच सीरप लिया| सोने की कोशिश की, लेकिन हाथ-पाँव में खुजली के कारण नींद नहीं आई| इस सारे चक्कर में रात की एक बज गयी थी| फिर खुजली के लिए Cetrizine की गोली ली तब आधे घंटे बाद नींद आ गयी और सुबह अपने नियमित समय पर 5 बजे उठ गया| रात के इस कष्टदायक अनुभव के पश्चात मैंने निश्चय किया कि पेट की गडबडी के लिए किसी फिजिशियन डाक्टर को दिखा लेना चाहिए|

27 04 2021 मंगलवार: सुबह पूजा-पाठ से निवृत्त हो कर फिजिशियन को दिखाने गया| उन्होंने RT-PCR रिपोर्ट पॉजिटिव होने के कारण सीटी स्कैन कराने के लिए कहा| मैंने उन्हें बताया कि मेरा ऑक्सीजन लेवल लगातार 97-98 रहता है और मुझे सांस लेने में भी कोई दिक्कत नहीं है| मैंने कहा मेरी मुख्य समस्या तो पतली दस्तें आना है| इस पर उन्होंने कहा कि आप 75 वर्षीय सीनियर सिटीजन हो और हम कोई रिस्क नहीं ले सकते हैं, इसलिए सीटी स्कैन आवश्यक है| इसके साथ ही उन्होंने Sugar (R), CBC, CRP (क्यू), LDH आदि के लिए ब्लड की जांचें भी लिख दी| पतली दस्तों के लिए तीन दिन की Zanocin OZ एंटीबायोटिक गोली और Vebact DS कैप्सूल लिखा| सीटी स्कैन में लंग्स में कोई इन्फेक्शन नहीं निकला और ब्लड रिपोर्ट में भी सब कुछ सामान्य था|

28 04 2021 बुधवार को फिर फिजिशियन को दिखाने गया और बताया कि गोलियां लेने के बाद पतली दस्तों में कुछ सुधार है और बुखार भी नहीं आया है| उन्होंने गोलियां-कैप्सूल तीन के बजाय पांच दिन लेने के लिए कहा| कोरोना के लिए नई RT-PCR जांच कराने की आवश्यकता के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि आपका सीटी स्कैन बिलकुल नार्मल है और अब आपको कोरोना नहीं है और न ही किसी नई जांच की आवश्यकता है|

29 04 2021 गुरुवार: भगवान की सेवा-पूजा में रूई पर इत्र लगा कर रखने पर हल्की सी खुशबू महसूस हुई| बहुत प्रसन्नता हुई| मन-ही-मन डाक्टरों और भगवान को धन्यवाद दिया कि 14 दिन बाद मेरी घ्राण शक्ति वापस लौट आई है और बुखार-खांसी से भी मुक्त हो गया हूँ|

30 04 2021 शुक्रवार: पूरे तीन सप्ताह पहले मेरे मन-मस्तिष्क और देह में व्याप्त हुआ कोरोना-भय अब प्रभु कृपा से दूर हो गया है, इसके लिए सभी को कृतज्ञतापूर्वक नमन|

इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में मेरे अनुभव के आधार पर मैं कोई निष्कर्ष नहीं दे रहा हूँ क्योंकि रोग की दुखद शुरूआत, गंभीरता, शारीरिक-मानसिक प्रभाव, इलाज, दवाओं और सुखद समापन के बारे में मैंने विस्तारपूर्वक वर्णन कर दिया है| प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक-मानसिक स्थिति भिन्न होती है| अतः पाठक इस विवरण के आधार पर अपने निष्कर्ष स्वयं ही ले सकते हैं| डाक्टर द्वारा निर्धारित औषधियां लेते रहें और अपने मन से या सुनी-सुनाई बातों के आधार पर कोई  दवा न लें|  सामान्य रूप से इतना और कह सकता हूँ कि कोरोना की पोजिटिव रिपोर्ट आने पर भी मन में नेगेटिव विचार न रखें, मेडिकल टीम और भगवान पर भरोसा रखते हुए शांतिपूर्वक मन को स्थिर रखें, विचलित न हों|

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शनिवार, 18 जुलाई 2020

मन मेरा...घर मेरा


मन मेरा...घर मेरा
- एस एन घाटिया

(कविता लिखना मेरा स्वभाव नहीं है| 1967 में कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने पर, जैसा कि उस समय प्रायः सबके साथ होता था, स्थायी नौकरी की तलाश में कुछ वर्ष बेकारी और छुटपुट अस्थायी  कार्यों में भी कटे| उसके बाद साहित्य और दर्शन के विद्यार्थी को स्थायी ठौर मिली तो वो भी एक बैंक में! सब कुछ अजीब सा लगता था| डेबिट-क्रेडिट से बंधी जिन्दगी, सुबह से शाम तक थकी जिन्दगी वाली कोल्हू-के-बैल जैसी स्थिति थी| ऐसे में एक दिन इस कविता की रचना हुई| यह भी खूब रही कि बैंक में डेबिट-क्रेडिट से बंधी वह जिन्दगी धीरे-धीरे ऐसी रास आई कि पता ही नहीं चला जीवन के बहुमूल्य 36 वर्ष कब और कैसे नित नई सार्थक अनुभूति के साथ निकल गए| )
                                                                                             

                                                                                                                                                           
मेले में खोये बालक सा

भटका करता है मन मेरा

चलते-चलते रो-रो कर

थक जब जाता है

भीड़ भरे कोलाहल से दूर

बैठ घने बरगद की छाँह तले

मन मेरा अकुलाता है|

                             बिछोह की उस बेला में

                             उमड़-उमड़ घन आते हैं

                             रोके नहीं रुकते हैं आंसू

                             परिचित और अपना सा लगता है

                             हर आता-जाता चेहरा

                             पास आने पर वह भी

                             कोई अजनबी निकलता है|

अबोध निरुपाय बालक-सा

हार-थक कर सो जाता हूं

आँख खुलने पर घिरा पाता हूं

अपने ही घर की

चिर-परिचित दीवारों से

जानी-पहचानी आवाजों से,

पदचापों से गंधों से|

                               ऐसे में

                               याद बरबस ही आ जाती है

                               स्कूल में पढ़ीं कविता की पंक्तियां -

                               देख लिया हमने जग सारा

                               अपना घर है सबसे प्यारा|

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सोमवार, 6 जुलाई 2020

जन्म की वर्षगांठ


जन्म की वर्षगांठ

-          एस एन घाटिया

मैं हर रोज की तरह मॉर्निंग वाक् के लिए सुबह छः बजे स्टेडियम पहुँच गया था| आकाश में मध्यम दर्जे के बादल छाए हुए थे और सूरज बादलों में से बीच-बीच में थोड़ा सा मुंह निकाल कर देख रहा था कि बाहर निकलूं या नहीं| मंद-मंद बहती हुई हवा शरीर को शीतलता प्रदान कर रही थी| हमारे वाकिंग ग्रुप के सदस्य एक-एक कर आते जा रहे थे और बातों का सिलसिला चालू होने लगा था| आज शिवदयालजी बहुत प्रफुल्लित लग रहे थे| मैंने उनसे इस प्रसन्नता का राज पूछा तो बताने लगे कि आज उनका जन्मदिन है| हम सब अचंभित हो उनकी ओर देखने लगे ऐसा कैसे हो सकता है? हमारे ग्रुप के जन्मदिवस कलेंडर के अनुसार आज तो किसी का भी जन्मदिवस नहीं है| शिवदयाल जी कहने लगे यही तो आज उनकी प्रसन्नता का राज है| उन्होंने बताया कल दोपहर वे पुरानी फाइलों के कागजों को जमा रहे थे तो उनकी जन्मपत्री हाथ लग गयी| उसे देखने पर उन्हें पता चला कि हिन्दू पंचांग के अनुसार उनका जन्म चैत्र शुक्ल पंचमी को हुआ था| तत्काल उन्होंने निश्चय किया कि हमें जन्मदिन व अन्य अवसरों को अंग्रेजी तारीखों (ग्रेगोरियन कलेंडर) के स्थान पर भारतीय तिथियों पर मनाना चाहिए| इस पर ग्रुप में तेज बहस छिड़ गयी और सब अपने-अपने विचार रखने के लिए उतावले हो गए|

स्टेडियम में वैसे तो मॉर्निंग वाक् वाले कई ग्रुप हैं, लेकिन हमारे ग्रुप में सभी प्रकार के बुद्धिजीवी अधिक हैं और इसीलिए यह ग्रुप प्रखर चर्चाओं के लिए विख्यात है| अब ग्रुप के समन्वयक अशोकजी ने स्थिति को संभालते हुए सबको शांत होने के लिए कहा कि चलिए आज इसी विषय पर चर्चा हो जाए और सबके विचार सुन लिए जाएं| विषय शिवदयालजी ने छेड़ा था, इसलिए सबसे पहले उनसे ही पूछा गया कि भारतीय तिथि से जन्मदिन मनाने से क्या लाभ होगा? शिवदयालजी ने कहा कि प्रश्न लाभ-हानि का नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य हमारी हिन्दू परम्परा को बढ़ावा देने का है ताकि नई पीढ़ी भारतीय तिथियों से परिचित हो सके| ग्रुप के सबसे मुखर सदस्य जगदीशजी जो हमेशा बहस के लिए तैयार रहते हैं तुरंत प्रतिवाद करने लगे कि नई पीढी की तो बात छोडिए हम में से ही कितने लोग दैनिक जीवन में भारतीय तिथियों को अपनाते हैं? जगदीशजी को समर्थन देते हुए सदैव शांत रहने वाले सुनीलजी कहने लगे कि  शिवदयालजी भाई सा. चलिए आपके कहने से जन्मदिन तो हम भारतीय तिथि से मना लेंगे, लेकिन मोमबत्ती बुझा कर काटोगे तो केक ही जो कि न तो भारतीय व्यंजन है और न ही मोमबत्ती (ज्योति) बुझाना हिन्दू परम्परा के अनुरूप है|

अब अपने आपको अत्याधुनिक समझने वाले दिनेशजी कैसे पीछे रह सकते थे| उन्होंने कंधे उचकाते हुए नहले पर देहला दागा कि हम भारतीयता की कितनी ही दुहाई दे लें, पहनेंगे तो पेंट–शर्ट और कोट-टाई ही जो कि कतई भारतीय परिधान नहीं है| पिछली शताब्दी में और उसमें भी स्वतन्त्रता के पश्चात के वर्षों में हमने जिस आतुरता से पाश्चात्य पद्धतियों को अपनाया है उसके कारण हमारे खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा, रीति-रिवाज यहाँ तक कि भाषा में भी ऐसे कई स्थायी बदलाव आ गए हैं जो हमारी तथाकथित भारतीय परंपराओं के सर्वथा विपरीत हैं| अतः वर्ष में केवल एक बार मनाये जाने वाले जन्मदिन की तारीख को भारतीय तिथि में बदलने से पहले यह आवश्यक है हम हमारी दैनिक जीवन शैली की पूरी तरह से भारतीय बनाने की कोशिश करें| 

इस चर्चा में इतिहास का पुट लगाते हुए जयंतजी कहने लगे कि मुगलों और मुगलों के पूर्व के अन्य कई मुस्लिम आक्रान्ताओं ने भारत पर 500 से अधिक वर्षों तक राज्य किया, लेकिन इतनी लंबी दासता की विषम परिस्थितियों में भी भारतीय जनता ने अपनी धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक परंपराओं एवं मान्यताओं को नहीं छोड़ा| इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी (1757 से 1858) और ब्रिटिश राज (1858 से 1947) के लगभग 200 वर्षों के शासन काल में भी हमारे पूर्वजों ने येन-केन-प्रकारेण अपनी धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखा| लेकिन विडम्बना तो यह है कि 1947 में राजनीतिक स्वतन्त्रता मिलते ही हम ऐसे बौराए कि हमें हमारी पुरानी परंपराएं पिछड़ेपन की निशानी लगने लगी और हम तेजी से अपनी जड़ों से दूर होते गए| हमारी जो परम्पराएं 700 वर्ष के विदेशी शासन में ख़त्म नहीं हुई, उन्हें हमने अपने तथाकथित स्वराज के मात्र 70 वर्षों की छोटी सी अवधि में तिलांजलि दे दी| और, अब देश में सामाजिक विघटन और वैश्वीकरण के दुष्परिणाम सामने आने के बाद हमें होश आने लगा है कि हमने यह क्या कर डाला! भारतीय परंपराओं की वर्तमान दुर्दशा को कवि प्रदीप ने फिल्म “नास्तिक” (1983) के गीत में बहुत ही दर्दभरे ढंग से प्रस्तुत किया था: “देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान, कितना बदल गया इंसान...इन्हीं की काली करतूतों से बना ये मुल्क मशान...कितना बदल गया इंसान...|” 
                     
अब शिवदयालजी को लगने लगा कि बहस में वे अकेले पड़ते जा रहे हैं, इसलिए उन्होंने कहा कि हमें कहीं न कहीं तो भारतीय परम्परा को पुनः स्थापित करने के लिए शुरूआत करनी ही पड़ेगी| इस पर  बारी आई कट्टर सनातनी पं रामप्रसादजी की, जो वैसे तो इस प्रकार की बहसों में कम ही बोलते थे क्योंकि उन्हें मालूम था कि जब लोगों को उनके विचारों की काट के लिए कोई ठोस तर्क नहीं मिलता है तो वे उन पर पुरातन पंथी होने का लेबल लगा चर्चा को वहीं समाप्त कर देते हैं| लेकिन पं. रामप्रसादजी को लगा कि आज उनका पक्ष भारी है| अतः उन्होंने पूरी दृढ़ता से अपनी बात रखते हुए कहा कि हमारे देश में जन्मदिन मनाने की परम्परा पूर्ण रूप से आयातित है क्योंकि न तो रामायण में और न ही महाभारत या अन्य प्राचीन भारतीय ग्रंथों में जन्मदिवस मनाने का कोइ प्रसंग  मिलता है| केवल सोलह संस्कारों जैसे जातकर्म संस्कार, नामकरण संस्कार, निष्क्रमण संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, चूडाकर्म (मुंडन संस्कार), विद्यारम्भ संस्कार, कर्णवेध संस्कार, उपनयन संस्कार इत्यादि की परम्परा अवश्य है| ऐसा लगता है जन्मदिवस मनाने का रिवाज हमारे यहां विदेशों की अंधाधुंध नकल के कारण आरंभ हो गया है| जन्मदिन की पाश्चात्य प्रथा ने समाज में जिस तरह पिछले 70 वर्षों में जड़े मजबूत कर ली हैं, उसी प्रकार अब पिछले कुछ वर्षों से हमारे देखते-देखते वेलेंटाइन दिवस भी भारत में पैर पसारने लगा है| अतः हमें इन सभी आयातित उत्सवों से सावधान रहने की आवश्यकता है|
    
यह सुनते ही इतिहास-विशेषज्ञ जयंतजी की तो बांछे खिल उठी और वे विस्तार से बताने लगे कि जन्मदिवस मनाने की परंपरा मूल रूप से प्राचीन मिश्र देश की है जहां की स्थानीय मान्यता के अनुसार फरोह (Pharoh) का राज्याभिषेक होने पर उसे देवता माना जाता था| अतः वहाँ राज्याभिषेक के दिन को फरोह के जन्मदिवस के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाने लगा| मिश्र देश से यह परंपरा ग्रीक लोगों ने अपनाई| आरंभ में ईसाई धर्मगुरुओं ने जन्म दिन मनाने की ग्रीक प्रथा का अनुमोदन नहीं किया था, पर अठारहवी शताब्दी में जर्मनी से आरंभ होते हुए यह प्रथा धीरे-धीरे पूरे यूरोप व अमेरिका में क्रिश्चियन समाज द्वारा स्वीकार कर ली गयी| इसी क्रम में ब्रिटिश राज के अंतर्गत भारत में नियुक्ति पर आने वाले अंग्रेज परिवारों ने जन्म-दिवस और विवाह-दिवस को वार्षिक उत्सव के रूप में मनाने का रिवाज यहां भी चालू रखा| उनकी देखा-देखी भारतीय राज-परिवारों और आभिजात्य वर्ग ने भी शनैः शनैः जन्म-दिवस और विवाह-दिवस मनाने की परंपरा को अपना लिया| कालान्तर में, विशेष रूप से स्वतन्त्रता के पश्चात शिक्षा के प्रसार और बढ़ती हुई सम्पन्नता के प्रभाव से जन-समुदाय ने भी इस रिवाज को अपना लिया| हमने जन्म-दिवस और विवाह-दिवस की परंपरा अंग्रेजों से ली थी इसलिए केक काटने और मोमबत्ती बुझाने के रिवाज को भी यथावत स्वीकार कर लिया|
                                
चर्चा के रुख को देखते हुए, शिवदयालजी ने भी अब पैंतरा बदला और कहा कोई बात नहीं, यदि हमने जन्म दिन मनाने की इस प्रथा को अपना ही लिया है तो अब हमें चाहिए कि इसे हिन्दू तिथियों के अनुसार मनाना शुरू कर इसका भारतीयकरण कर देना चाहिए| लेकिन पर्यावरणविद हेमंतजी को इस पर कड़ी आपत्ति थी|  वे कहने लगे वैसे ही हमारे भारतीय त्यौहार कम नहीं हैं, महीने में यदि दिन तीस तो तीज–त्यौहार पैंतीस होते हैं| फिर हमने त्योहारों-उत्सवों को सादगीपूर्ण परंपरागत ढंग से मनाने के बजाय इतना आडंबरपूर्ण बना दिया है कि यह लोगों की सम्पन्नता के प्रदर्शन के लिए स्टेटस सिम्बल बन कर रह गया है| इस तरह के अनावश्यक उत्सवों के कारण भी देश में प्रदूषण की समस्या विकराल होती जा रही है और साथ ही प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक दोहन अंधाधुंध रूप से बढ़ता जा रहा है| यही कारण है कि कोरोना जैसी भयानक महामारियां भी हमें एक प्रकार से चेतावनी दे रही हैं कि हम अपने तौर-तरीकों को सुधारें और जीवन में कृत्रिमता को छोड़ कर सहज सरल जीवन शैली अपनाएं| यदि जन्मदिन मनाने की प्रथा उधार ली हुई है तो हमें इसे तुरंत छोड़ देना चाहिए|



हमारे ग्रुप के रश्मिकांतजी का रुझान आजकल अध्यात्म, विशेष कर वेदान्त के सिद्धांतों की और बढ़ता जा रहा था| सामान्यतः ग्रुप में तत्वबोध जैसे गूढ़ विषयों में सदस्यों की रुचि कम ही रहती है| लेकिन आज का विषय ही ऐसा था कि रश्मिकांतजी को भी चर्चा में अध्यात्म का महत्त्व प्रतिपादित करने का अवसर मिल गया| उन्होंने कहा कि हम जन्मदिन किसका मनाते हैं? इस नश्वर देह का या आत्मा का जो नित्य, अजर-अमर है? जो नित्य (eternal) है उसका तो न कोई आदि–मध्य-अंत होता है और इसलिए उसकी कोई वर्षगाँठ भी नहीं होती है| और, जो नश्वर देह है वह तो जीर्ण वस्त्र से नईं वस्त्र की भांति बदलती रहती है| अतः चौरासी लाख देहों में से किस-किस देह का जन्मदिन कब-कब और किस-किस पद्धति से मनाया जाए? शिवदयालजी भी इन दिनों द्वैत-अद्वैत का अध्ययन कर रहे थे| उन्हें बात एकदम समझ में आ गयी और स्वयं द्वारा आरंभ की हुई चर्चा का पटाक्षेप करते हुए तुरंत कह उठे “वाह रश्मिकांतजी, आपकी बात एक दम ठीक है, इस देहरूपी आवरण की वर्षगांठ मनाने की न तो कोई तुक है और न ही कोई आवश्यकता है!”
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शनिवार, 23 मई 2020

बकानी में स्वतंत्रता संग्राम का अलख


बकानी में स्वतंत्रता संग्राम का अलख  

    - एस. एन. घाटिया 


(भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के संदर्भ में बकानी का योगदान इतिहास का एक निरंतर विस्मृत होता जा रहा स्वर्णिम पृष्ठ है जिसे इस आलेख के विद्वान लेखक श्री सत्यनारायण घाटिया प्रकाश में लाए हैं| श्री घाटिया बकानी के एक ऐसे गौरवशाली व्यक्तित्व हैं जो बैंकिंग एवं वित्त प्रबंधन में विशेष योग्यता रखते हुए बैंक ऑफ बड़ौदा के ए.जी.एम. पद से सेवानिवृत्त हुए हैं और पू.छा.से.स. के उपाध्यक्ष पद पर सुशोभित हैं| आपने चार वर्ष तक लंदन में कार्यरत रह कर भारत का गौरव संवर्धन किया है तथा "चार्टिंग द फ्यूचर" नाम से बैंकिंग के इतिहास विषयक पुस्तक का लेखन भी किया है| संप्रति कोटा निवासी श्री घाटिया प्रबुद्ध चेता होने के अतिरिक्त कोटा में रिटायर्ड बैंक ऑफिसर्स फोरम के अध्यक्ष, कोटा डवलपमेंट फोरम के पूर्व अध्यक्ष तथा कोटा सिटीजन कौंसिल के सदस्य भी हैं| बकानी के इतिहास के एक महत्वपूर्ण आयाम को अपने कुशल लेखन से संयोजित करने के लिए आभार|                                                                                                                                                 संपादक त्रय)  

जीवन के आरंभिक वर्षों में मेरे जैसे कई पूर्व छात्रों के केरियर की सुदृढ़ नींव बकानी की सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक चेतना के कारण ही निर्मित हो सकी है। प्रभात फेरियों में बड़े स्कूल के स्काउट अध्यापक श्रद्धेय श्री बालचंदजी शर्मा के देशभक्ति गीत हमारे बाल-मन में एक नवीन ऊर्जा का संचार कर हमें अपने देश और समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा देते थे। लेज़िम व डम्बल की लय- ताल के साथ देशभक्ति के तराने हमारे मन-मस्तिष्क में रच-बस गए थे:  

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा।
सदा शक्ति सरसाने वाला
प्रेम-सुधा बरसाने वाला
वीरों को हरसाने वाला
मातृभूमि का तन-मन सारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा।

ब्रिटिश शासन से मुक्ति के लिए भारतवर्ष में मुख्य रूप से दो स्वतंत्रता संग्राम हुए हैं। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में आरंभ हुआ था जिसमें ब्रिटिश सेना में कार्यरत भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध किया था। यह स्वतंत्रता संग्राम लगभग दो वर्षों तक देश के विभिन्न भागों में चला एवं कई स्थानों पर अंग्रेज अधिकारियों के साथ असैनिक अंग्रेज स्त्रियां व बच्चे भी मारे गए। इस संग्राम में सैकड़ों भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब, तात्या टोपे, मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर और मंगल पांडे इत्यादि इस सशस्त्र क्रांति के लोकप्रिय नायक थे। तत्कालीन राजपूताने में भी "कमल और रोटी" का संदेश पहुंच चुका था। योजना के अनुसार 28 मई, 1857 को नसीराबाद की सैनिक छावनी में क्रांति का शंखनाद हुआ। 3 जून, 1857 को नीमच की छावनी में भारतीय सैनिकों ने शस्त्र उठा लिए। इसी के साथ ब्यावर, देवली, एरिनपुरा (जोधपुर) तथा खैरवाड़ा की छावनियों में भी क्रांति की ज्वाला धधक उठी। शाहपुरा (भीलवाड़ा) नरेश भी क्रांतिकारियों के साथ हो गये, जबकि कोटा और झालावाड़ नरेश अंग्रेजों के पक्ष में थे।   
कोटा शहर में 1857 का यह संग्राम लाला जयदयाल कायस्थ व मेहराबखां पठान के नेतृत्व में लड़ा गया था। कोटा में नियुक्त एजेंसी के सर्जन डॉक्टर सेडलर और सिटी डिसपेंसरी के इंचार्ज मिस्टर सेवील को मार डाला गया। सन 1857 की धनतेरस (कार्तिक कृष्ण 13) के दिन कोटा के पोलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन और उसके दो पुत्र तलवार के वार से मारे गए। मेजर बर्टन का सिर कोटा शहर में घुमाया गया और भारतीय सैनिकों ने शहर पर अधिकार कर लिया। कोटा महाराव रामसिंहजी कुछ स्वामिभक्त राजपूत सरदारों के साथ गढ़ में बंद थे और उनका शासन गढ़ तक ही सीमित रह गया था। बाद में रजवाड़ों और अंग्रेज सेना की सहायता से जयदयाल कायस्थ व मेहराबखां पठान अपने कई सैनिक साथियों के साथ मारे गए और छह महीने पश्चात 31 मार्च, 1858 को कोटा शहर पुनः महाराव रामसिंहजी के अधिकार में आ गया। जून 1858 में तात्या ने टोंक पर अधिकार कर लिया। टोंक से बूंदी, भीलवाड़ा तथा कांकरोली में अंग्रेजों को मात देते हुए वे झालरापाटन पहुंचे। झालावाड़ का राजा भी  अंग्रेजों का सहयोगी था, किन्तु राज्य की सेना ने तात्या का साथ दिया और देखते-देखते स्वातंत्र्य सैनिकों ने झालावाड़ पर अधिकार कर लिया। इसके बाद तात्या टोपे भारतीय स्वातंत्र्य सैनिकों के साथ इन्दौर की ओर निकल गये।

बकानी में भी कोटा रियासत का किला था पर यहां इस प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रभाव का कोई उल्लेख नहीं मिलता है, क्योंकि राजपूताना में मुख्यतः जहां-जहां अंग्रेज सेनाएं नियुक्त थीं युद्ध वहीं हुआ था। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम अंततः विफल रहा क्योंकि यह केवल सैनिकों का असंगठित युद्ध था जिसमें आम जनता का जुड़ाव नहीं हो सका था। ब्रिटिश साम्राज्ञी विक्टोरिया द्वारा दिनांक 1 नवंबर 1858 को की गई उद्घोषणा के अनुसार अब संपूर्ण भारत पर ब्रिटिश सरकार का एकछत्र साम्राज्य स्थापित हो गया।  

देश में अंग्रेजों का एकछत्र साम्राज्य स्थापित हो जाने के बाद, भारत के लोगों को नीतियां बनाने व शासन करने का कोई अधिकार नहीं रह गया था। ब्रिटिश शासकों और स्थानीय सामंतों की मनमानी से जनता में अंग्रेजों के विरुद्ध घृणा बढ़ती गई जिसने द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम को जन्म दिया। इसका आरंभ 1876 में कलकत्ता में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी द्वारा भारत एसोसिएशन के गठन एवं तत्पश्चात 1885 में ए.ओ. ह्यूम द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से माना जाता है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से नवशिक्षित मध्यम वर्ग का रुझान राजनीति की ओर होने लगा और इससे भारतीय राजनीति का स्वरूप ही बदल गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के पश्चात और विशेष रूप से 1915 में महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत आने के बाद देश के सुदूर कस्बों व गांवों का प्रबुद्ध वर्ग भी स्वदेशी आंदोलन से जुड़ने लगा।

बकानी में भी कई प्रबुद्ध व्यक्ति विद्यार्थी जीवन से ही स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गए थे। मेरे पूज्य पिताजी श्री रामनारायणजी घाटिया के पुराने कागजों में भारत की आज़ादी, समाज सेवा व ग्रामोद्धार के बारे में मुझे उनके निम्नलिखित संस्मरण मिले हैं, जिन्हें पढ़ने से बकानी में तत्कालीन स्थिति (1926-1947) का पता चलता है:

श्री रामनारायणजी घाटिया की डायरी

बड़ा स्कूल व बकानी में पहला अखबार: वे लिखते हैं कि “बचपन से जहां तक मुझे स्मृति आती है सन 1926 या 27 में जब मैं कक्षा दो में था ग्राम बकानी का बड़ा स्कूल बन गया था और दो क्लासों में ही मैं पुराने स्कूल में पढ़ा था। कक्षा तीन में तो मुझे बकानी के बड़े स्कूल में पढ़ने का सौभाग्य मिला जहां से मैने 1934 में कक्षा आठ की परीक्षा इलाहाबाद बोर्ड से द्वितीय श्रेणी में गणित में डिस्टिंक्शन के साथ उत्तीर्ण की।“
एक संग्रहणीय दस्तावेज के रूप में 80 वर्ष पुराना यह बोर्ड सर्टिफिकेट नीचे दिया हुआ है:





आगे वे बताते हैं कि “हमारे गांव में सबसे पहिला अखबार कक्षा दो में श्री प्यारेलालजी मास्टर साहब ने कलकत्ता से निकलने वाला साप्ताहिक पत्र “स्वतंत्र” जिसका वार्षिक चंदा केवल मात्र रु. 2/- था मेरे लिए मंगवाया। इसके साथ ही मैने अपने साथी श्री संपतराजजी जैन के शामिल में समाज सुधारक कार्यालय लखनऊ से छोटे-छोटे भजनों की समाज सुधार संबंधी किताबों का पार्सल मंगा कर इन छोटी-छोटी दो-दो पैसे वाली पुस्तकों को बेचना शुरू किया।“

बकानी के पहले स्वतंत्रता सैनानी श्री निरंतर हरिजी: “मेरे गांव बकानी के पुराने नेता श्री निरंतर हरिजी विदेशी वस्त्र आंदोलन में अजमेर गिरफ्तारी दे चुके थे और 15 दिन की जैल काट चुके थे। वे जब जैल से छूट कर आए तो बकानी में उनका स्वागत किया गया था। उनका नारा था “क्यों भाई क्यों”? हम लोग कहते “क्या भाई क्या?” फिर वे कहते “एक काम करोगे?” हम लोग कहते “क्या भाई क्या?” निरंतर हरिजी कहते “जैल चलोगे?’ हम उत्साह से कहते “हां भाई हां”। इससे हमारे बाल मन में भी देश को आज़ाद कराने के लिए जैल जाने की भावना जागृत हुई। देश की छोटी-मोटी खबरें भी हमें साप्ताहिक “स्वतंत्र” से मिलती रहती थी। श्री निरंतर हरिजी को आज़ादी के बाद स्वतंत्रता सैनानी का पद तथा 15/- रुपया माहवार पेंशन मिलती रही।“

हाड़ौती में प्रजामंडल की स्थापना: तत्कालीन राजपूताने में स्वतंत्रता संग्राम का आरंभ किसान आन्दोलनों से हुआ क्योंकि रजवाड़ों में राजाओं और जागीरदारों के विरुद्ध असंतोष बढ़ता जा रहा था। अलग-अलग रियासतों में चल रहे किसान आंदोलन प्रजामंडल से जुड़ गए। प्रजामंडल आंदोलन राजनीतिक जागरण एवं देश में गाँधी जी के नेतृत्व में चल रहे स्वतंत्रता संघर्ष का परिणाम था। यद्यपि आरंभ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देशी रियासतों के प्रति उदासीन रही। सुभाषचन्द्र बोस की अध्यक्षता में सन 1938 में आयोजित हरिपुरा (सूरत जिला, गुजरात) अधिवेशन में रियासतों के प्रति कांग्रेस की नीति में परिवर्तन आया। रियासती जनता को भी अपने-अपने राज्य में संगठन निर्माण करने तथा अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन करने की छूट दे दी गई। उसी वर्ष (1938) मेवाड़ में संगठित राजनीतिक आन्दोलन की शुरुआत हो गयी। इस नई जन-जागृति के जनक थे माणिक्यलाल वर्मा जिन्होने 25 अप्रैल, 1938 को उदयपुर में कार्यकर्त्ताओं की बैठक कर प्रजामंडल का विधान स्वीकृत कराया। प्रजामंडल की स्थापना होते ही तत्केकालीन शासन द्वारा इसे गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया और आन्दोलन-प्रचारकों के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाहियाँ की जाने लगी। सन 1938 में ही कोटा राज्य प्रजामण्डल की स्थापना हुई, जिसका प्रथम अधिवेशन नयनूराम शर्मा की अध्यक्षता में माँगरौल में हुआ। 1941 में नयनूराम शर्मा की हत्या हो जाने के बाद प्रजामण्डल का नेतृत्व अभिन्न हरि ने किया। “भारत छोड़ो आंदोलन” में 13 अगस्त, 1942 ई. को सरकार ने शम्भूदयाल जी, हीरालाल जी जैन एवं वेणी माधव जी आदि कोटा के स्वतन्त्रता सेनानियों को गिरफ्तार कर रामपुरा कोतवाली में बन्द कर दिया। यह गिरफ्तारी अंग्रेज सरकार के इशारे पर कोटा स्टेट ने की थी। इसकी खबर आग की तरह कोटा में फैल गयी। इससे जन-आंदोलन और भड़का तथा जनता ने शहर कोतवाली पर राष्ट्रीय झंडा फहरा दिया। कोटा के नागरिक व छात्र रामपुरा कोतवाली को घेर वहां धरने पर बैठ गए। बकानी में जन्मे अब्दुल हमीदजी इस धरने में अग्रिम पंक्ति में बैठे हुए थे।स्वतन्त्रता सेनानियों ने पुलिस को बैरकों में बंद कर दिया व नगर पर जनता का अधिकार हो गया। कोटा महाराव द्वारा दमन न करने के आश्वासन पर जनता ने महाराव को शासन सौंपा और प्रजा मण्डल के कार्यकर्त्ता रिहा कर दिए गए।

बकानी में प्रजामंडल की स्थापना: “उन्हीं दिनों थानेदारी से इस्तीफा दे श्री अभिन्न हरिजी कोटा राज्य प्रजा मंडल के अध्यक्ष बने। वे रामगंजमंडी के पास के एक गांव के रहने वाले थे, लंबा लट्ठ रखते थे और और नंगे सिर रहते थे जो घोट-मोट था। वे हमारे गांव में प्रजामंडल बनाने आए थे। उन्होनें मेरे पिताजी श्री भैरूलालजी घाटिया को बकानी प्रजामंडल का प्रथम अध्यक्ष और मेरे साथी श्री संपतराजजी को प्रथम मंत्री बनाया। मैने भी मंत्री बनने की हठ की थी और मेरा भी नाम सहायक मंत्री में लिखा गया था। मैं एक बार अपने बच्चे का इलाज कराने इन्दोर गया था। उस रोज श्री राजगोपालचारी का भाषण राजबाड़ा के सामने हुआ था उसमें राजाजी ने बहुत जोर-शोर से रजवाडों व अंग्रेजों के दोहरे शासन को खत्म कर देश में इन पुराने टूटे-फूटे सामंती बर्तनों के बजाय कांग्रेस के नए प्रजातांत्रिक बर्तन लाने के लिए हमको कहा था, यह बात मुझे आज भी याद है।"

बकानी के सात लोगों की थानेदार द्वारा गिरफ्तारी: “श्री लल्लूलालजी कायस्थ सन 1942 से 1947 के बीच में बकानी में थानेदार रहे थे। मेरे मोड़ी मंडल कांग्रेस का अध्यक्ष होने की वजह से कुछ न कुछ शिकवा-शिकायत होते ही रहते थे और सन 1946-47 में आज़ादी मिलने से पहले मेरा व मेरे पिताजी श्री भैरूलालजी घाटिया सहित बकानी के छह अन्य लोगों का रविवार के रोज छुट्टी के दिन चालान बना कर एस.डी.ओ. साहिब श्री शंभूकरणजी चारण इकलेरा की अदालत में पेश करने हेतु थाना इकलेरा में बंद रखा। उधर बकानी से दूसरी बस जो झालावाड़ जा रही थी उस पूरी बस में गांव के करीब सभी प्रतिष्ठित और हम सात आरोपियों के परिवार के व्यक्ति एस.पी. साहिब झालावाड़ के पास पहुंचे। वहां उस दिन श्रीमान डी.आई.जी साहिब भी पधारे हुए थे, उन्हें ले कर इकलेरा कोर्ट में पहुंचे और एस.डी.ओ. साहिब श्री शंभूकरणजी चारण को घर से बुलवा कर रविवार को ही नियमानुसार हमारे जमानत मुचलके करवा रिहाई की गई। बकानी की स्वागतातुर जनता हमें जुलूस में बाज़ार बकानी में ले गई और श्री रामगोपालजी गांधी सरपंच के सभापतित्व में सभा कर के पुलिस के विषय में आलोचनाएं की । डेढ़ साल तक हमारा मुकदमा चलता रहा और हम सातों आरोपियों के खिलाफ मुकदमा खारिज किया गया तथा श्री लल्लूलालजी थानेदार को नौकरी से बर्खास्त किया गया। सन 1947 में 15 अगस्त का जुलूस निकालने के लिए भी हमको इकलेरा से ऑर्डर लाना पड़ा तब 15 अगस्त का जुलूस बकानी में निकाला जा सका। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय योगदान के लिए 26 जनवरी 1986 को हाड़ौती स्वतंत्रता संग्राम सैनानी समिति द्वारा प्रमाण पत्र एवं राजस्थान प्रदेश कांग्रेस द्वारा मुझे स्वतंत्रता सैनानी का प्रशस्ति पत्र मिला।“


जयपुर कांग्रेस अधिवेशन: “श्री वेदपालजी त्यागी जो स्वतंत्रता से पहले कोटा राज्य के मंत्रियों में लिए गए थे और आगे जा कर कोटा राज्य व राजस्थान के राज्यपाल तक पहुंचे थे। श्री वेदपालजी त्यागी हमारे वकील भी थे इस वजह से कोटा के होने से मेरा उनसे नजदीकी संबंध था। वे जयपुर में आयोजित कांग्रेस के 55वें अधिवेशन में हमारे गांव से भी 15-16 वालंटीयर ले गए थे। मैं मोड़ी मंडल कांग्रेस अध्यक्ष व श्री संपतराजजी बकानी मंडल कांग्रेस के अध्यक्ष होने से हम भी इस अधिवेशन में जयपुर गए थे। पंडित जवाहरलाल जी नेहरू की अध्यक्षता में यह अधिवेशन सन 1948 में हुआ था। तब अधिकांश प्रतिनिधि टेंटों में रुके थे और दरियों पर बैठ कर पार्टी के कार्य की रूपरेखा तैयार की थी।“ 
बकानी में शहीद स्मारक: स्वतंत्रता के पश्चात श्री संपतराजजी जैन की अध्यक्षता के दौरान प्रजामंडल बकानी द्वारा स्वाधीनता संग्राम के शहीदों और सैनिकों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रथम स्वाधीनता दिवस पर हाट चौक में भारतीय स्वतंत्रता स्मारक की स्थापना की गई थी:


श्री संपतराजजी जैन मात्र 18 वर्ष की आयु में सन 1936 से ही राजनीति से जुड़ गए थे। पारिवारिक व्यवसाय में आपका मन कभी नहीं लगा और देश व समाज सेवा में आप तन-मन-धन से आजीवन जुटे रहे। इसी प्रकार श्री चांदमलजी बोथरा ने भी समाज सुधार व देशसेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाएं दी। राजनीतिक जागृति के लिए वे शिक्षा के प्रसार को अत्यंत आवश्यक मानते थे। आप भी प्रजामंडल बकानी के अध्यक्ष रहे और कोटा राज्य प्रजामंडल के भी सदस्य रहे। 
श्री सैयद मोहम्मद अब्दुल हमीदजी कौसर: बकानी में स्वतंत्रता संग्राम के अलख की यह चर्चा श्री अब्दुल हमीदजी के उल्लेख के बिना अधूरी रहेगी। श्री अब्दुल हमीदजी का जन्म 5 मई 1929 को बकानी में हुआ था। उनके पिताजी का नाम सैयद मीर मोहम्मद अली था। जब वे तीन वर्ष के थे, तब उनके पिता की मृत्यु हो जाने से उनके परिवार के सदस्य उन्हें बकानी से बूँदी ले गए। “भारत छोड़ो आंदोलन” के सिलसिले में जब कोटा कोतवाली को स्वतंत्रता सेनानियों की गिरफ्तारी के विरोधस्वरूप घेर लिया गया था तो उस धरने में अब्दुलहमीदजी कौसर और रामचंद्रजी सक्सेना अग्रिम पंक्ति में बैठे थे। उसी समय घुड़सवार सैनिकों ने आन्दोलनकारियों को रौंदने का प्रयास किया। पुलिस के साथ इस संघर्ष में छात्र नेता अब्दुलहमीदजी एवं रामचंद्रजी सक्सेना सहित और भी कई लोग घायल हुए। दिनांक 20 अगस्त, 1942 ई. को स्वतंत्रता सेनानियों को बिना शर्त रिहा करने पर कोतवाली से घेरा हटाया गया।
श्री कौसर इसके बाद अपनी शिक्षा पूर्ण कर बूंदी में वकालत करते रहे। श्री अब्दुल हमीदजी  'लखपति' के नाम से प्रसिद्ध थे क्योंकि सन 1954 ई. में उनके एक लाख रुपये की लॉटरी खुली थी।
खादी-व्रत: हमने अपने बचपन में देखा कि बकानी के कई व्यक्तियों ने स्वदेशी आन्दोलन से प्रभावित हो आजीवन खादी पहनने का व्रत ले रखा था। महात्मा गांधी के अनुसार हाथ से कते-बुने खादी के वस्त्र पहनना भी देशसेवा थी। बकानी में नियमित रूप से खादी पहनने वाले व्यक्तियों में श्री निरंतर हरिजी, बाबू चांदमलजी बोथरा, बासाहब संपतराजजी जैन, श्री रामगोपालजी गांधी, श्री कन्हैयालालजी जोशी, श्री रामनारायणजी घाटिया, श्री पन्नालालजी भंडारी, श्री नंदलालजी घाटिया, श्री हंसराजजी तातेड़ इत्यादि प्रमुख रहे हैं। श्री रामनारायणजी घाटिया ने बकानी मे खादी के प्रचार-प्रसार के लिए कई वर्षों तक खादी-भंडार का संचालन किया और बाद में कई वर्षों तक खादी-भंडार रामपुरा बाज़ार कोटा के प्रबंधक रहे और फिर सन 1967 तक क्षेत्रीय खादी भंडार कोटा के भी मैनेजर रहे।
मेरे पिताजी श्री रामनारायणजी घाटिया बातचीत में बताते रहते थे कि महात्मा गांधी की अंतिम यात्रा के दर्शन के लिए सन 1948 में वे दिल्ली गए थे। दिल्ली की सड़कों पर असंख्य लोगों की भीड़ के कारण वे सड़क के किनारे एक पेड़ पर चढ़ गए और वहां से उन्होनें गांधीजी के अंतिम दर्शन किए।
आज जब मैं उस समय की स्थितियों के बारे में विचार करता हूं तो पाता हूं कि जब झालावाड़ जिले के अन्य कस्बों के लोग निरंकुश सामंती शासन के विरुद्ध आवाज उठाने में डरते थे, बकानी के इन देशसेवकों ने जिला स्तर पर कांग्रेस के स्वाधीनता आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया। श्री संपतराजजी व श्री चांदमलजी ने कई वर्षॉं तक झालावाड़ जिला कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारियों को संभाला। इन सभी लोगों नें सामाजिक व शैक्षिक गतिविधियों के माध्यम से स्वाधीनता आंदोलन की प्रवृत्तियों को गति प्रदान की। इनके प्रयासों के परिणामस्वरूप बकानी मे राजनीतिक चेतना का स्तर जिले के अन्य कस्बों की तुलना में काफी उच्च रहा। बकानी के इन देशभक्तों की सेवा एवं त्याग के बारे में ये पंक्तियाँ सटीक हैं-
      तज स्वार्थ का मार्ग, अहिंसा को अपनाये,
             
शीश झुका चुपचाप पुलिस की लाठी खाये,
             
गये जेल, हथकड़ी हाथ में, कष्ट उठाये,
             
बहुत बहुत आशीष भारत माता से पाये।
अध्ययन व नौकरी के सिलसिले में कई दशकों तक देश- विदेश के विभिन्न भागों में रह कर सेवा-निवृत्ति के पश्चात अब पूर्व छात्र सेवा समिति के माध्यम से अपनी मातृभूमि बकानी से पुनः जुड़ने पर मैं पाता हूं कि स्वतंत्रता-पूर्व के राजनीतिक माहौल और वर्तमान राजनीतिक सोच में काफी अंतर आ चुका है। समय व परिस्थितियों के परिवर्तन के कारण यह अंतर आना स्वाभाविक भी है। आज भी बकानी में राजनीतिक सक्रियता और जागरूकता पहले से अधिक देखने को मिलती है। आवश्यकता है अंतर्द्वंदो से ऊपर उठ कर इस राजनीतिक सक्रियता का उपयोग  बकानी क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए किया जाए। आशा है राजनीतिज्ञों की वर्तमान एवं आगामी पीढ़ीयां पारस्परिक समन्वय बना कर जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी की उदात्त भावना से बकानी क्षेत्र के चतुर्मुखी विकास को नई गति व आयाम प्रदान करेगी

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नोट: यह लेख पूर्व छात्र सेवा समिति - राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, बकानी, जिला झालावाड़ (राजस्थान) के तत्वाधान में आयोजित शताब्दी समारोह 2015 की स्मारिका में प्रकाशित हुआ था|
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